किसी ने सही ही कहा है - संघर्ष ही जीवन का दूसरा नाम है।
मैं नही जानता की इससे आप क्या तात्पर्य निकालेंगे। और मैं यह भी नहीं जानता की आज मुझे इस विचार पर विमर्श करने के लिए किसने प्रेरित किया है। अपने सामान्य क्षम के ऊपर जोर देने के बाद मैंने यह सार निकाला है कि ज़िन्दगी के पहले क्षण से लेकर अंतिम क्षण तक, आप कभी ना ख़तम होने वाली प्रतियोगिता मे एक और पयदे है।
जीवन के पहले नन्हे कदम से आपका येही मार्ग दर्शन किया जाता है। जो जीता वोही सिकंदर। अपसोस बस इसी बात का है की इस जीत की परिभाषा कोई नहीं जनता। व्यावारिक नजरिये से देखने पर इसमें विधि के व्यंग में कोई घोर असमंझस नज़र नहीं आती। आखिर इस समाज मे कुछ भी परम नहीं है, सब कुछ एक तराजू पर नापा और तोला जाता है।
विद्यालय मे प्रथम आने की रेस।
दफ्तर मे अपने सहकर्मी से आगे निकलने की रेस ।
घर पे अपने पडोसी, रिश्ते दारो, दोस्त्तों से आगे निकलने की रेस ।
कोई मकानों की होड़ मे है तो कोई हरे गाँधी जी की पूजा मे मग्न है।
और फिर आप पृथ्वी पर अपने कुछ लम्हे इसी मकसत को हासील करने मे व्यर्थ कर देते है।
शायद यह संसार की रचना का आधार है। परन्तु मुनष्य को प्रगति के पथ पर सारथि की तरह आगे बढाती उर्जा भी येही है। कुछ पाकर दिखाने की इच्छा, अपने को दूसरो से बेहतर साबित करने की चाह।
आपका अपना नजरिया होगा - कोई सही या गलत नहीं है।
बस आपसे येही गुज़ारिश है की इस १०० मीटर की दौड़ मे अपने जीवन के हसीं लम्हों को ना भूलना।
समय आने पर आपके जीवन का मूल्य आपका बैंक बैलेंस नहीं, आपके अपने, आपके दोस्त बताएंगे।
भगवत गीता का सहारा लूँगा -
तू क्या लेकर आया था, और क्या लेकर जायेगा।
जो पाया यही पाया, जो खोया यही खोया।
जो आज तेरा है, कल किसी और का था और कल किसी और का हो जायेगा
परिवर्तन संसार का नियम है .
शुभ रात्रि!
Wednesday, May 5, 2010
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